Sunday, 25 September 2011

ढलता सूरज ....

ढलता  सूरज देखो मुझसे कह गया,
निराश मत हो, हताश मत हो |


मैं कल फिर आऊँगा,
अपना प्रकाश फिर फैलाऊँगा,
ह्रदय में नई उमंग भर कर,
अम्बर से धरा को छूकर,
निशा को हटा विभा लूँगा,
संसार से अंधकार को मिटाऊँगा,
मुकुल की पंखुरियाँ  खोलने,
मधुकर का आलस्य तोड़ने,
सो रहे प्राणियों को जगाऊँगा, 
नेत्रों से अंधकार की पट्टी हटाऊँगा ||


ढलता  सूरज देखो मुझसे कह गया,
निराश मत हो, हताश मत हो |


मैं कल फिर आऊँगा,
अपना प्रकाश फिर फैलाऊँगा,
प्रसन्नता के द्वार पर दस्तक देने,
सफलता की रह को नतमस्तक करने,
आशा की किरण लाऊँगा, 
निराशा को दूर भगाऊँगा,
चलता रहता हूँ निरंतर मैं अपने जीवन में,
उर्जा देता हूँ हर पल सभी के कण-कण में,
दृष्टि भ्रम करके छुपा सा मैं कभी लगता हूँ, 
पर कभी छुपता नहीं, विश्व में दिख जाऊँगा ||


ढलता  सूरज देखो मुझसे कह गया,
निराश मत हो, हताश मत हो |


मैं कल फिर आऊँगा,
अपना प्रकाश फिर फैलाऊँगा,
अपने कर्त्तव्य से ना मुँह मोड़ो,
जो है ध्येय उसे ना छोड़ो,
सच्चाई का पथ अपनाओ,
कर्म करो, सफल बन जाओ,
अंधियारे के बाद उजियारा आता है,
सूरज यही हमें सिखलाता जाता है,
इसी सिख को जीवन भर अपनाना है,
और जीवन को उन्नत मुझे बनाना है ||


ढलता  सूरज देखो मुझसे कह गया,
निराश मत हो, हताश मत हो ||




8 comments:

  1. ooooooh kitni anupam kitni prerak kavita ye kitni sundar ashao ka le sabera khadi hai ..........

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  2. u write really well...keep going

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  3. very gud Anshu.......bt yaar kuch hamre bare mein bhi soch liya kr...Hindi dictionery kholni pad gai...I didn't knew u hv dis much gud command on Hindi!!!!! God bless you!!!

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  4. thank you all for liking my poems and boosting me.

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